लचित बोरफुकन पर निबंध

प्रस्तावना

लचित बोरफुकन भारत के एक महान नेता थे। जिन्होंने मुगलों के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी थी। मुगलों को असम राज्य से बाहर निकालने और असम राज्य के लोगों की सुरक्षा करने में लचित बोरफुकन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लचित अपने वीर कार्यों के कारण देशभर के एक साहसी और प्रेरणादायक व्यक्ति के रूप में निखर कर आए। इन्होंने सराय घाटी की लड़ाई में मुगलों के खिलाफ लड़ने वाली सेना का नेतृत्व किया। लचित बोरफुकन एक बहादुर मिलिट्री के जवान रहे। जिन्होंने असम राज्य अथवा समाज के समक्ष एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश किया।

कौन थे लचित बोरफुकन?

लचित बोरफुकन बोरफुकन और अहोम किंडोम आर्मी के कमांडर इन चीफ थे। उनका जन्म 24 नवंबर 1622 को वर्तमान असम में स्थित अहोम साम्राज्य में हुआ था। उनके पिता का नाम मोमाई तमुली बोरबरुआ जो कि ऊपरी-असम के राज्यपाल और अहोम सेना के कमांडर इन चीफ थे। उनकी माता का नाम कुंती मोरन था। वह अपने माता-पिता के सबसे छोटे बेटे थे।

मानविकी और सैन्य रणनीतियों में अपना अध्ययन पूरा करने के बाद, उन्हें अहोम राजा के सालधारा बरुआ के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भी नियुक्त किया गया था जैसे कि अस्तबल रॉयल हॉर्स के अधीक्षक और हाउस गार्ड के अधीक्षक।

सरायघाट का युद्ध और लचित बोरफुकन

मुगल सम्राट औरंगजेब ने असम के खिलाफ अभियान का नेतृत्व करने के लिए प्रसिद्ध राजपूत सेनापति राम सिंहा को नियुक्त किया। 1669 में राम सिंहा 18,000 से अधिक सैनिकों के साथ असम पहुंचे और युद्ध शुरू हो गया। लेकिन राम सिंह अहोम सेना को तोड़ने में असफल रहे। एक दिन राम सिंहा की सेना ने 10,000 अहोम सैनिकों को मार डाला, इससे अहोम सैनिकों को भारी झटका लगा और वे अपने आप को हतोत्साहित महसूस करने लगे।

दूसरी ओर, लचित बीमार पड़ गया। राम सिंहा इस स्थिति का लाभ उठाना चाहते थे और सरायघाट में ब्रम्हपुत्र के जल पर एक नौसैनिक युद्ध के माध्यम से अहोम की रक्षा को तोड़ने में लगभग सफल रहे। बीमारी के बावजूद लाचित नाव पर सवार हो गए और युद्ध में शामिल हो गए। लचित की वीरता को देखकर उनके सैनिकों ने प्रेरणा ली और पूरी प्रेरणा से युद्ध करने लगे और राम सिंह को हरा दिया। राम सिंहा ने 5 अप्रैल 1671 को असम छोड़ दिया।

लचित बोरफुकन दिवस कब मनाया जाता है?

प्रत्येक वर्ष 24 नवंबर को असम में लचित बोरफुकन की वीरता और सरायघाट की लड़ाई की जीत का जश्न मनाने के लिए लाचित दिवस मनाया जाता है। उनकी बहादुरी और उनके योगदान के लिए, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित बोरफुकन स्वर्ण पदक से सम्मानित किया जाता है।

लचित बोरफुकन के मैदान का निर्माण सन् 1672 में स्वर्गदेव उदयादित्य सिंघा द्वारा लचित बोरफुकन की स्मृति में किया गया था। जो वर्तमान में जोरहाट में स्थित हैं। लचित बोरफुकन दिवस हर साल कई तरीके से बनाया जाता है। असम राज्य में विद्यालयों में गीत गाकर, निबंध प्रतियोगिताओं के माध्यम से इस दिवस का आयोजन किया जाता है।

निष्कर्ष

लाचित की मृत्यु 50 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण 1672 में हो गई। लेकिन अपनी महान वीरता, देशभक्ति और कर्तव्यपरायणता के साथ लचित आज भी असम के इतिहास के नायक बने हुए हैं। वर्तमान समय में लचित बोरफुकन को असम के इतिहास का एक महानायक माना जाता है। इनके जीवन की कहानी भारत के समस्त नागरिकों को प्रेरणा प्रदान करती है।

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