यदि में परीक्षक होता

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प्रस्तावना


संसार मव सबसे पीड़ित प्राणी विद्यार्थी माना जा सकता है।क्योंकि विद्यर्थि को अनेक कष्टों का सामना करनस पड़ता है।नियमित पढ़ाई करना,परीक्षा में उत्तीण होना ,बड़ा ही कठिन काम है।इसलिए में परीक्षक होता तो विद्यर्थियों की परेशानी और समस्याओं का ध्यान रखकर इस तरह से उनकी उत्तर पुस्तिका जाँचता, जिससे परीक्षाफल इतना नह बिगड़ता ,जितना की आजकल बिगड़ रहा है।वैसे परीक्षक बन जाना कोई सरल काम नही है।प्रतेक अध्यापक अच्छा परीक्षक नही बन सकता ।फीर भी प्रतेक शिक्षक चाहता है कि।वह बोर्ड या विश्वविद्यालय में अपने विषय का प्रधान परीक्षक बने,में भी यही कल्पना करता हूँ कि यदि में परीक्षक होता,तो कितना अच्छा होता।

परीक्षक का दायित्व


परिक्षक शिक्षा – क्षेत्र में पवित्र माना जाता है विद्यार्थी के बौद्धिक ज्ञान का पता परीक्षा के द्वारा ही चलता है। इसलिए पूरे साल भर शिक्षकों ने छात्रों को जो कुछ पढ़ाया है ।और छात्रों से जितना ग्रहण किया है ।उसका निष्पक्ष परीक्षण करना ही परीक्षक का उद्देश्य होता है। इसलिए परीक्षक का यह दायित्व होता है कि वह विद्यार्थियों के उत्तर पुस्तिकाओं को बड़े ध्यान से पढ़ें देखे और उसका सही-सही आकलन करें प्राय अंग्रेजी और गणित में अधिक विद्यर्थि अनुत्तीर्ण देखे गए हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि अन्य विषयों में प्रथम श्रेणी के अंक आते हैं ।उक्त दोनों विषयो में से किसी एक मे पचास में से पांच आंक ही आते है।इसलिए विद्यार्थी के हाथ मे अंकसूची आती है ।तो उसकी आत्मा कराह उठती है।आप जरा सोचिए जो विद्यार्थी अन्य विषयों में अच्छे अंक अर्जित करता है।और प्रखर बुद्धि वाला है।वो एक विषय मे इतना मंद बुद्धि कैसे हो सकता है।अवश्य ही उत्तरपुस्तिका को जांचने में कोई त्रुटि रही है।इसलिए परीक्षक का दायित्व है।कि वह ऐसी प्रक्रिया अपनाये ,जिससे उत्तर-पुस्तिका का सही मूल्यांकन हो सके और परीक्षार्थियों को उसकू प्रतिभा के अनुसार अंक मिल सके ।

मेरे विचार में परीक्षक को अंक देने का ऐसा तरीका अपनाना चाहिए,जिससे प्रश्न के उत्तर का सही और गलत अंश अलग-अलग छाटा जा सके।ऐसा करने में परीक्षक को कुछ अधिक शमत लगेगा।लेकिन इससे परीक्षार्थी को लाभ होगा और परीक्षा परिणाम भी सुधरेगा ।परीक्षक परीक्षार्थी का भाग्य-विधाता होता है।अतः उसका यह कर्तव्य है।कि वह दूध का दुध ओर पैनी का पानी करे।दूध को पानी से अलग छाँटने की क्षमता परीक्षक में होनी चाहिए।सही अंश के अंक अवश्य मिलने चाहिए।परीक्षक को बिना बाहरी प्रभाव के तटस्थ भाव से अंकन करना चाहिए।उसे विद्यर्थियों के परिश्रम का पूरा ध्यान रखना चाहिए।इस तरह अपने दायित्वों का निर्वाह करने वाला परीक्षक ही सुपरिक्षक माना जाता है।और उसी के द्वारा परीक्षा जैसे पवित्र कार्य की प्रतिष्ठा सुरक्षित रह पाती है।

परीक्षक बनने पर मेरा कार्य


यदि में परीक्षक होता तो बड़ी सावधानी से उत्तर-पुस्तके जाँचता ओर निष्पक्षता से अंकन कार्य करता।मेरा उद्देश्य परीक्षक बनकर धन अर्जित करना ही नही होता,अपितु विद्यर्थि को उसके परिश्रम का उचित पुरस्कार देना होता है।प्रायः परिक्षकगण अंक देने में कंजूसी दिखाते है।और कठोरता से पेश आते है।वे समझते है।कि कम अंक देकर ओर परीक्षा परिणाम का प्रतिशत कम रखने से उसकू शान बढ़ेगी।परन्तु ऐसा करने वाले परीक्षक अपयश के भागी बनते है।और विद्यार्थी समाज मे उनको आदर नही मिलता है।इसलिए में परीक्षार्थियों को अच्छे अंक देकर ऐसे परीक्षकों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करता।में अंक देने में कंजूसी नही करता ओर डूबते हुए विद्यार्थियी को उबारने की चेष्टा करता।इसके लिए में ऐसा तरीका अपनाता ,जिससे प्रतेक प्रश्न के सही और गलत अंश को छाटा जा सके और भौतिक उत्तर के लिए अच्छे अंक दिए जा सके।कम अंक वाले विद्यार्थियों की पुस्तक को में दोबारा जाँचता ओर उसके साथ उदारता दिखाता।इस तर्क के अंकन कार्य से केवल कमजोर विद्यर्थि को ही लाभ नही मिलता बल्कि अन्य छात्रों का परीक्षा परिणाम भी सुधरता।

इस तरह यदि में परीक्षक होता,तो निश्चय ही सभी परीक्षार्थी लाभान्वित होते।इससे बोर्ड या विश्वविद्यालय का परीक्षा परिणाम भी नही बिगड़ता।इससे मेरे सर्वत्र ही सराहना होती और परीक्षार्थियों की हिम्मत बढ़ती ।वे अपनी पढ़ाई ।में ओर भी रुचि लेने लगते तथा प्रगतिपथ पर बढ़ते हुए देश के अच्छे नागरिक बनते।

उपसंहार


परीक्षार्थी परीक्षा रूपी भूत से भयभीत रहता है। इसलिए मैं भी सोचता हूं कि यदि में परीक्षा हो जाता तो परीक्षा से भयभीत छात्रों की हर तरह से मदद करता। परीक्षा का सामना करने से सब कतराते हैं ।और जो डट कर सामना करते हैं वे उसमें सफलता भी प्राप्त करते हैं। पर डटकर सामना करने वालों की संख्या कम होती है ।इसी कारण बोर्ड या विश्वविद्यालय की किसी भी कक्षा का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत नहीं रहता है।कुछ परीक्षक मैं भ्रष्टाचार भी दिखाई देता है।कुछ परीक्षक अपने चहेते छात्रों को कम लिखने पर भी पूरे अंक देते हैं। और उससे अधिक मेघावी छात्र को कम अंक देते हैं ।ऐसे परीक्षकों के विरुद्ध में आवाज उठाता और स्वयं भी ऐसी गलती नहीं करता जिससे प्रतिभाशाली छात्र कुंठित हो।इस तरह में परीक्षक बनने पर अपने कर्तव्य का ईमानदारी और पवित्रता से निर्वाह करता।

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