मानसिक सुख और संतोष पर निबंध

मनुष्य उन्नति कर रहा है लेकिन एक महत्वपूर्ण चीज़ की कमी है , वह है संतोष। मनुष्य परिश्रम करता है और धन कमाने की होड़ में लगा रहता है।  इस संसार में लोग धन कमाने के पीछे भागते है और उसी को प्राथमिकता देते है। मनुष्य अपनी सारी जिन्दगी धन कमाने में लगा देता है और हर बार मनुष्य की चाह बढ़ती रहती है। मनुष्य को हमेशा लगता है कि उनकी इच्छाएं पूरी नहीं हो रही है और मनुष्य  धन कमाने के बावजूद भी  असंतोष में डूबा रहता है। संतोष करने में ही मनुष्य की भलाई है।  असंतोष मनुष्य के  जीवन में अशांति लाता है।

मनुष्य के लिए संतोष से बढ़कर कोई धन नहीं होता है। मनुष्य के पास संतोष से बड़ी कोई संपत्ति नहीं होती है।जब मनुष्य को संतोष जैसा अनमोल धन मिल जाता है तो उसे संसार में उसे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं होती है।इस दुनिया में लोग सोचते है कि धन कमाने से अधिक ज़रूरी कुछ नहीं है। मनुष्य किसी भी तरीके से धन कमाना चाहते है चाहे वह उचित हो या अनुचित। ज़्यादा से ज़्यादा धन कमाने के लालच में लोगो ने अपनी सीमाएं लांघ दी है। इसकी वजह से जो लोग धनवान है वह और अधिक अमीर बनते जा रहे है और जो गरीब लोग है उनकी हालत और अधिक खराब हो गयी है।

मनुष्य सुखी और संपन्न होने के लिए अधिक धन कमाना चाहते है।  यही कारण है कि लोग असंतोष और असंतुष्टि में डूबे जा रहे है।गरीब लोग धन के अभाव में असंतुष्ट होकर आत्महत्या कर लेते है।लोग धन कमाने के चक्कर में इतने अंधे हो गए है कि लोग भ्रष्टाचार  का सहारा ले रहे है और गलत नीतियों का सहारा भी ले रहे है।  लोग नशीले चीज़ो को बेचकर , गलत अपराध करके पैसा कमाना चाहते है जो बहुत ही गलत है।

आजकल मनुष्य दिन प्रतिदिन स्वार्थी बनता जा रहा है। उनका दिमाग हमेशा धन कमाने के पीछे भागता है।  वह सोचते है जितना अधिक धन होगा उतना अधिक सुख उन्हें जीवन में प्राप्त होगा।

समाज की सोच ऐसी होती जा रही है।  जो व्यक्ति संतोष रूपी धन के साथ जीवन व्यतीत करता है , उसे सही माईनो में सुख और शान्ति मिलती है।  मगर अधिकतर लोग यह बात समझते नहीं है। ऐसे लोगो का वह मज़ाक उड़ाते है।  समाज में रहने वाले लोग धनवान लोगो को ज़्यादा प्राथमिकता के साथ सम्मान देते है। ऐसा देखा गया है कि धनवान लोगो के पास इतने पैसे होने के बावजूद संतोष नहीं रहता है।  वह संतुष्ट रहते है और रात को चैन से सो नहीं पाते है।

अनैतिक तरीको से पैसे कमाकर मनुष्य के  मन को कभी शान्ति नहीं मिलती है।पूरे दुनिया की अर्थव्यवस्था में असंतोष देखा जा सकता है। आजकल लोग धन कमाते है ताकि वह महंगे चीज़े खरीद सके , खाये पीये और मौज करे।  धन कमाकर मनुष्य शक्तिशाली बनना चाहता है।

मनुष्य की मनोकामनाएं ख़त्म नहीं होती है।  उनको पाने की चाह में वह असंतुष्ट  हो जाता है। धन कमाकर वह जिस सुख को पाना चाहता है , उससे उनकी जिन्दगी में तनाव बहुत बढ़ जाता है। कुछ लोग झूठ बोलकर , रिश्ववत लेकर अनैतिक कार्य करते है।  इस वजह से उनके मन में डर उत्पन्न हो जाता है। इस जाल में वह फंसकर रह जाते है। इससे उनके जीवन में असंतोष रहता है।उनके मन में भय और चिन्ताएं पनपने लगती है। इससे छुटकारा पाने का एक ही उपाय है और वह  है संतोष का रास्ता।चिंतामुक्त जीवन और जीवन में शान्ति पाने के लिए धन की नहीं, संतोष करने की आवश्यकता है।  जितना भी मिले उसी में  खुश रहना चाहिए।

निष्कर्ष

लोग भौतिक सुखो के पीछे ज़्यादा दौड़ते है।  यह भौतिकवादी दृष्टिकोण असंतोष का प्रमुख कारण है। लोग धन कमाकर अच्छा और सुखमय जीवन जीना चाहते है जिसकी वजह से वह अपना मानसिक सुख और संतोष खो बैठते है।जब मनुष्य को संतोष से भरा हुआ खज़ाना मिल जाता है , तो उसे  किसी तरह के धन की ज़रूरत नहीं पड़ती है।

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