बनारस (वाराणसी) की गलियाँ और घाट, निबंध, लेख।
बनारस(वाराणसी) का इतिहास।
बनारस(वाराणसी) शहर हमारे देश के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध शहर है। बनारस हमारे देश का सबसे पवित्र शहर कहा जाने वाला बनारस ना केवल मंदिर और अपने धार्मिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। गलियों ओर घाटों के लिए भी प्रसिद्ध है। बनारस के तटो पर सूर्य की किरणे जब पड़ती है तो जो देखते ही बनती है वहां का दृश्य मनोरम हो जाता है जैसे कहा भी जाता है कि बनारस की सुबह, अवध की शाम, ओर मालवा की तें विश्व प्रसिद्ध है।
वैसे तो बनारस की बहुत सी चीजें अपने आप में गौरवशाली इतिहास जुड़े हुए हैं यहां के मनोरम दृश्य घाट स्थल इमारतें मंदिर इत्यादि एवं यहां का स्वादिष्ट व्यंजन यहां की गंगा जमुना तहजीब यहां की शान है। जो कि वर्षों से स्थापित होकर चली आ रही है यहां के लोग एवं बाहर रहने वाले जनमानस बनारस में आकर मोक्ष की कामना करते है। कहा जाता है कि मृत्यु होने पर मनुष्य को सीधे मोक्ष बनारस में प्राप्त होता है कितनी पावन पवित्र भूमि है बनारस।
बनारस(वाराणसी) शहर का नामकरण:- वाराणसी शब्द ‘वरुणा ‘ ओर ‘असी ‘ दो नदी वाचक शब्द के योग से बना है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार और ‘वरुणा ‘और ‘असी’ नाम की नदियों के बीच में बसने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा।
पद्म पुराण के एक उल्लेख के अनुसार। दक्षिणउत्तर में वरना और पूर्व में असी की सीमा से धीरे होने होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। अर्थ वेद, अग्नि पुराण, महाभारत। सभी मैं वाराणसी का उल्लेख मिलता है। अर्थवेद में जहां इसे आधुनिक वरुना के समानार्थक माना है, वही अग् अग्निपुराण में नासी नदी का उल्लेख मिलता है, और महाभारत में काशी का नाम वाराणसी में से मिलता है।
जैन ग्रंथ में वाराणसी के लिए पांच मुख्य विभाग बताएं (1) ‘देव वाराणसी ‘जहां विश्वनाथ का मंदिर तथा चौबीस जिनपट स्थित है। (1) मदन वाराणसी (2) यवनों का निवास स्थान (3) विजय वाराणसी (4) राजधानी वाराणसी (5) दंतरवात सरोवर।
वाराणसी(बनारस) के मंदिर वाराणसी में कल प्रमुख मंदिर स्थित हैं प्रमुख मंदिरों का नगर है वाराणसी। हर एक चौराहे पर एक मंदिर है छोटे से लेकर कई बड़े मंदिर है यहां जो अपने समय की इतिहास पर आधारित है। वाराणसी के मंदिर में काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, ढूंढ़ीराज गणेश, तुलसी मानस मंदिर, इस तरह देखे तो बहुत ही सुंदर बने आकर्षित मंदिर बनारस में है ।जो अपने इतिहास को जाहिर करते हैं।
बनारस(वाराणसी) के घाट वाराणसी (काशी )में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं। सभी घाट किसी ना किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित है। बनारसी के घाटो की आकृति धनुष की तरह होने की वजह से बहुत ही मनोहारी लगते है।सभी घाटो के पूर्वाभिमुख होने से दुर्योदय के समय घाटो पर सूर्य की पहली किरणे के साथ दस्तज देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारंभ होकर दक्षिण में असी घाट तक सौ से भी अधिक घाट है।मृनिकीर्णिका घाट पर चिता की अग्नि कभी शांत नही होती क्युकी बनारस के बाहर मरने वालों की अंत्येष्टि पुण्य प्राप्ति के लिए यही की जाती है।कई हिन्दू धर्म के लोग मानते है।कि यहां मरने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है।
बनारस(वाराणसी) घाटो की महिमा।
(1) असी से आदिकेशव तक घाट श्रृंखला में हर घाट के अलग ठाट है।
(2) किसी घाट पर शिव गंगा जी में समाए हैं तो कहीं घाट की सीढ़ियां शास्त्रीयविधान में निर्मित है।
(3) किसी घाट की पहचान वहां के महलों से पता चलता है।
(4) कई घाट मौज मस्ती का केंद्र भी है।
(5) गंगा जी केवल काशी में ही उत्तर वाहिनी है
(6) सभी घाटों में शिव जी स्वयं विराजमान माने जाते हैं।
(7) विभिन्न सुअवसर पर गंगा पूजा के लिए इन घाटों को ही साक्षी माना जाता है।
(8) विभिन्न विख्यात संत महात्माओं ने इन्ही घाटों पर आश्रय लिया है।
(9) तुलसीदास, रामानंद, रविदास, तैलंग स्वामी, कुमार स्वामी प्रमुख है।
बनारस में लगभग सौ से भी अधिक घाट है।
बनारस के घाट 4 में लंबे तट पर बने हैं। इन सो घाट में से पांच घाट तो बहुत ही पवित्र माने जाते हैं इन्हें पंचतंत्र भी कहा जाता है।
(1) असी घाट
(2) दशाश्वमेध घाट
(3) आदि केशव घाट
(4) पंचगंगा घाट
(5) मणिकर्णिका घाट।
हर घाट की अपनी अलग अलग पहचान है वाराणसी के कई घाट मराठा साम्राज्य के अधीनस्थ बनवाए गए थे। जिनमें सिंधिया ,होल्कर, भोसले और पेशवा परिवार शामिल थे वाराणसी के कई घाट तो स्नान के लिए ही है और कुछ घाट अंत्येष्टि के लिए है । वहां के महानिर्वाण घाट में महात्मा बुद्ध ने भी स्नान किया था।
बनारस के घाट, 85 घाटो की सूची | |
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माता आनंदमई घाट | अस्सी घाट |
अहिल्या घाट | आदि केशव घाट |
अहिल्याबाई घाट | बद्री नारायण घाट |
बाजीराव घाट | बाउली / उमराओगिरी / अमरोहा घाट |
भंडाइनी घाट | भोसले घाट |
ब्रह्मा घाट | बूंदी परकोटा घाट |
चऊकी घाट | चौसट्ठी घाट |
चेत सिंह घाट | दांडी घाट |
दरभंगा घाट | दशाश्वमेध घाट |
दिग्पतिआ घाट | दुर्गा घाट |
गंगा महल घाट (मैं) | गंगा महल घाट (द्वितीय) |
गाय घाट | गौरी शंकर घाट |
गणेशा घाट | गोला घाट |
गुलारिआ घाट | हनुमान घाट |
हनुमानगरधि घाट | हरीश चंद्र घाट |
जैन घाट | जलसई घाट |
जानकी घाट | जतारा घाट |
कर्नाटक राज्य घखिरकिया घाट | श्री गुरु रविदास घाट |
खोरी घाट | लाला घाट |
लाली घाट | ललिता घाट |
महानिर्वाणी घाट | मन मंदिरा घाट |
मानसरोवर घाट | मंगला गौरी घाट |
मणिकर्णिका घाट | मेहता घाट |
मीर घाट | मुंशी घाट |
नंदेश्वर घाट | नारद घाट |
नया घाट | नेपाली घाट |
निरंजनी घाट | निषाद घाट |
पुराना हनुमाना घाट | पंचगंगा घाट |
पंचकोटा | पांडे घाट |
फूटा घाट | प्रभु घाट |
प्रह्लाद घाट | प्रयाग घाट |
राजघाट पेशवा अमृतराओ द्वारा बनाया गया | राजा घाट / दुफ्फरीन पुल / मालवीय पुल |
राजा ग्वालियर घाट | राजेंद्र प्रसाद घाट |
राम घाट | राणा महला घाट |
रेवन घाट | सक्का घाट |
संकठा घाट | सर्वेश्वर घाट |
सिंधिया घाट | शिवाला घाट |
शीतला देवी घाट | शीतला घाट |
सामने घाट | सोमेश्वर घाट |
टेलिनाला घाट | त्रिलोचन घाट |
त्रिपुरा भैरवी घाट | तुलसी घाट |
वच्छराज घाट | तवेणीमाधव घाट |
विजयनगरम घाट | त्रिलोचन घाट |
बनारस(वाराणसी) की गलियाँ
बनारस में कहा जाता है कि जितनी सड़के हैं उससे सौ गुनी अधिक गलियां है यदि आप बनारस की सड़कों को देखेंगे तो अन्याय होगा क्योंकि असली जीवन तो बनारस की गलियों में ही है बनारस को 2 नामों से पुकारा जाता है पहला पक्का महाल और दूसरा है भीतरी महाल. काशी खंड के अनुसार विश्वनाथ खंड केदार केदार खंड की तरह वर्तमान में दो वर्तमान में भी दो भागों में बसा है लोगों ने केवल बाहरी रूप ही देखा होगा अगर उसका पक्का रूप देखना है तो वहां की गलियों को देखना होगा जिसे पक्का महाल भी आप कह सकते है।
पक्की सड़के तो वहां अभी ही निर्मित हुई है परंतु वहां की कच्ची सड़के आप की कसरत करवा सकती हैं ।और वहां की गलियों से यदि आप कोई पता ढूंढ रहे हो तो आपको ज्योमेट्री की शिक्षा लेनी पड़ेगी क्योंकि वहां की गलियों की जानकारी वहां के रहने वाले लोगों को भी कभी-कभी असमंजस में डाल देती है।
इसलिए किसी जानकार वाले को ही साथ रखें अपने साथ नहीं तो आप उन बनारस की गली में कहीं खो जाएंगे।वैसे तो बनारस में सड़कों का कोई महत्व नही है।सड़को का उपयोग तो बस जुलूस निकालने के लिए ही किया जाता है। बनारस की कई गलियों पर तो सूर्य की किरने तक नहीं पड़ती है। इन गलियों की साइन बोर्ड भीतरी महाल में नही मिलेगी नतीजा यह होता है कि काफी दूर आगे जाने पर रास्ता आप को बंद मिलेगा। बनारस की गलियों की तरह शायद ही आप को कही देखने को मिले।
(1) विश्वनाथ गली- काशी नगरी के हृदय में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर के प्रांगण में स्वयं भगवान शंकर ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
(2) कचौड़ी गली- यह गली विश्वनाथ गली के ठीक पीछे स्थित है। इस गली की विशेषता यह है कि यहाँ पर स्थित अधिकांश दुकानें कचौड़ी की हैं। इसी कारण गली का नाम कचौड़ी गली पड़ा।
(3) खोवा गली- जैसा की नाम से ही प्रतीत हो रहा है कि “खोवा गली” अर्थात् इस गली में खोवा की बहुत बड़ी मण्डी लगती है।
(4) ठठेरी (बाजार) गली- यह गली चौक क्षेत्र में स्थित है। इस गली में पहले ठठेरा लोग रहते थे जो बर्तन इत्यादि का निर्माण किया करते थे। इसलिए इसका नाम ठठेरा गली पड़ा।
(5) दालमण्डी गली- यह गली काशी के दो महत्वपूर्ण बाजार चौक तथा नई सड़क को आपस में जोड़ती है। इस गली में कपड़े-जूते-चप्पल तथा इलेक्ट्रानिक्स की दुकानें तथा श्रृंगार की वस्तुएँ थोक में मिलती है।
(6) नारियल (बाजार) गली- यह गली चौक थाना के ठीक पीछे है जो दालमण्डी गली में आकर मिलती है। इस गली में नारियल, विवाह से सम्बन्धित सामान बिकते हैं। नारियल की बड़ी मण्डी होने के कारण इस गली का नाम नारियल बाजार पड़ा।
(7) घुंघरानी गली-यह गली दालमण्डी से निकली है तथा दालमण्डी और काशी के मुख्य बाजार बाँसफाटक को आपस में जोड़ती है। इस गली में भी इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकानें हैं।
(8) गोविन्दपुरा गली- यह गली चौक क्षेत्र में है तथा चौक मजार से पहले अवस्थित है। इसमें सोने-चाँदी के आभूषण, रत्न इत्यादि की दुकानें हैं।
(9) रेशम कटरा गली- यह गली गोविन्दपुरा गली की मुख्य शाखा है। इसमें भी सोने-चाँदी के आभूषण की दुकाने हैं। यहाँ सोने-चाँदी के आभूषणों का निर्माण किया जाता है।
(10) विन्ध्यवासिनी गली- इस गली को विन्ध्याचल की गली भी कहा जाता है। इस गली में विन्ध्याचल माता का मंदिर है।
(11) कालभैरव गली- यह गली विश्वेश्वरगंज क्षेत्र में है। यह भैरोनाथ चौराहा से आरम्भ होकर कालभैरव मंदिर तक फैली है।
(12) भूतही इमिली की गली- यह गली मैदागिनी क्षेत्र में स्थित टाउनहाल मैदान के पीछे है। यह मालवीय मार्केट से आरम्भ होकर भैरोनाथ क्षेत्र तक जाती है।
(13) सप्तसागर गली- यह गली मैदागिन क्षेत्र में है तथा टाउनहाल मैदान के गेट के ठीक सामने से शुरू होती है तथा नखास की ओर निकलती है। इस गली में पूर्वांचल की सबसे बड़ी दवा मण्डी है।
(14) आसभैरव गली- यह गली नीचीबाग क्षेत्र में है। आस-भैरव के मन्दिर के नाम पर इस गली का नाम आसभैरव गली पड़ा। इस गली में सिक्खों का पवित्र गुरुद्वारा स्थित है।
(15) कर्णघंटा गली- यह गली कर्णघंटा क्षेत्र में पड़ती है। कर्णघंटा से शुरू होकर रेशम कटरा तक जाती है। यहीं पर विन्ध्यवासिनी गली भी आकर मिलती है।
(16) गोला दीनानाथ गली- गोला दीनानाथ गली में पूर्वांचल की सबसे बड़ी मसाले की मण्डी है।
(17) गोपाल मंदिर की गली- यह गली बुलानाला क्षेत्र से प्रारम्भ होकर गोपाल मंदिर तक जाती है। इस मन्दिर में गोपाल जी की अष्टधातु निर्मित प्रतिमा है।
(18) पत्थर गली- काशी में पत्थर की गली दो क्षेत्र में है। एक जतनबर की पत्थर गली तथा दूसरी चौक क्षेत्र की पत्थर गली।
(19) हनुमान गली- यह गली हनुमान घाट से प्रारम्भ होकर अस्सी तथा गोदौलिया मार्ग को आपस में जोड़ती है। हनुमान घाट के निर्माण के साथ ही इस गली का निर्माण हुआ।
(20) तुलसी गली- यह गली अस्सी क्षेत्र में पड़ती है। गोस्वामी तुलसीदास के नाम पर इस गली का नाम तुलसी गली पड़ा। गोस्वामी तुलसीदास जी की मृत्यु इसी गली में हुई थी।
(21) गुदड़ी गली- इस गली में “बड़ा गुदड़ जी” तथा “छोटा गूदड़ जी” के नाम के दो प्रसिद्ध अखाड़े थे।
(22) शिवाला गली- यह गली शिवाला घाट से आरम्भ होती है तथा शिवाला घाट को मुख्य मार्ग से जोड़ती है।
(23) खिड़की गली- यह गली खिड़की घाट से प्रारम्भ होती है। खिड़की घाट का निर्माण बैजनाथ मिश्र ने करवाया था। यह घाट लगभग दो सौ वर्ष पुराना है। अतः गली भी उतनी ही पुरानी है।
(24) जुआड़ी गली- ऐसा कहा जाता है कि प्रसिद्ध जुआड़ी नन्द दास ने जुए की एक दिन की कमाई से इसे बनवाया था। इसलिये इस गली का नाम जुआड़ी गली पड़ा। यह गली अब विलुप्त हो चुकी है।
(25) ढुंढीराज गली- यह गली चौक क्षेत्र के ज्ञानवापी से आरम्भ होती है तथा दण्डपाणि भैरव मन्दिर तक जाती है। इस गली में गणेश जी का मन्दिर है जो गणनाथ विनायक के नाम से जाने जाते है।
(26) संकठा गली- यह गली संकठा घाट से आरम्भ होती है। गली में संकठा देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जिसका निर्माण गोहनाबाई ने करवाया था।
(27) पशुपतेश्वर गली- यह गली चौक क्षेत्र से आरम्भ होकर रामघाट तक जाती है। इस गली में पशुपतेश्वर महादेव का मन्दिर है। उन्हीं के नाम पर इस गली का नाम पशुपतेश्वर गली पड़ा।
(28) पंचगंगा गली- पंचगंगा घाट के नाम पर इस गली का नाम पंचगंगा गली पड़ा। ऐसी मान्यता है कि पंचगंगा घाट पर पाँच नदियों का संगम होता है।
(29) चौरस्ता गली- यह गली गायघाट से प्रारम्भ होती है और त्रिलोचन घाट, तेलियानाला होते हुये चौखम्भा तक जाती है। चौखम्भा में बीबी हटिया की पतली गली में मिलती है।
(30) नेपाली गली- सुप्रसिद्ध नेपाली मन्दिर के नाम पर ही इस गली का नाम नेपाली गली पड़ा। यह विश्वनाथ गली तथा ललिता घाट को आपस में जोड़ती है। नेपाली मन्दिर के नाम पर ही इस मोहल्ले का नाम नेपाली खपड़ा पड़ा।
(31) सिद्धमाता गली- यह गली मैदागिन क्षेत्र के गोलघर में स्थित है। यह गोलघर को बुलानाला मुख्य मार्ग से जोड़ती है। इस गली में सिद्धमाता देवी का मन्दिर है।
(32) कामेश्वर महादेव गली- यह गली मच्छोदरी पर बिड़ला हॉस्पिटल के सामने से प्रारम्भ होती है जो कामेश्वर महादेव मन्दिर तक जाती है।
(33) त्रिलोचन महादेव गली- यह गली गायघाट से प्रारम्भ होकर त्रिलोचन महादेव मन्दिर तक जाती है तथा कामेश्वर महादेव गली से आपस में मिलती है।
(34) पाटन दरवाजा गली- यह गली गायघाट से शुरू होकर बद्री नारायण घाट तक जाती है।
(35) भार्गव भूषण प्रेस वाली गली- मच्छोदरी स्थित भार्गव भूषण प्रेस को मच्छोदरी मुख्य मार्ग से जोड़ती है। इसलिए इस गली को भार्गव भूषण प्रेस वाली गली कहते हैं।
(36) लट्ट गली- यह गली जतनबर में स्थित है तथा गणेश गली को आपस में जोड़ती है।
(37) नइचाबेन गली- यह गली कोयला बाजार से प्रारम्भ होकर बहेलिया टोला तक जाती है।
(38) नचनी कुआँ गली- यह गली भी कोयला बाजार से प्रारम्भ होकर भदऊ चुँगी तक जाती है।
(39) चित्रघंटा गली- यह गली चौक क्षेत्र से प्रारम्भ होकर रानी कुआँ तक जाती है तथा इस गली में चित्रघंटा माता का मन्दिर स्थित है।
(40) गढ़वासी टोला गली- यह गली चौखम्भा से प्रारम्भ होकर संकठा की गली में जाकर मिलती है।
(41) भारद्वाजी टोला गली- यह गली प्रहलाद घाट से प्रारम्भ होकर भदऊ चुँगी तक जाती है।
(42) हाथी गली- यह गली बीबी हटिया की गली से प्रारम्भ होकर दादुल चौक होते हुए ब्रह्मा घाट तक जाती है।
(43) कातरा गली- यह गली राजमन्दिर क्षेत्र में पड़ती है। यह अत्यन्त छोटी गली है इस गली में केवल 4 से 5 मकान ही पड़ते हैं। यह गली एक तरफ से बन्द है।
(44) चौखम्भा गली- यह गली चौखम्भा क्षेत्र से शुरू होकर ठठेरी बाजार की गली में आकर मिलती है।
(45) सुग्गा गली- सुग्गा गली ठठेरी बाजार से प्रारम्भ होकर रानी कुआँ तक जाती है। इस गली पर सिन्नी टुल्लु का पहला कारखाना था।
(46) गोला गली- ठठेरी बाजार स्थित भारतेन्दु भवन के पीछे की गली को गोला गली के नाम से जाना जाता है। यह गली ठठेरी बाजार की मुख्य गली से निकली है।
(47) ननपटिया गली- नन अर्थात छोटी जाति के लोग इस गली में रस्सी तथा जूट से बने बोरे की सिलाई करते हैं जिसके कारण इस गली को ननपटिया गली कहते हैं। यह गली विश्वेश्वरगंज क्षेत्र में पड़ती है।
(48) नरहर पुरा गली- नरहेश्वर महादेव के नाम पर इस गली का नाम नरहर पुरा गली पड़ा।
(49) अगस्त कुण्डा गली- यह गली गौदोलिया तांगा स्टैण्ड के पास से प्रारम्भ होकर दशाश्वमेध घाट तक जाती है।
(50) मीरघाट गली- यह गली मीरघाट से प्रारम्भ होकर दशाश्वमेध तक जाती है।
(51) मणिकर्णिका गली- यह गली मणिकर्णिका घाट से प्रारम्भ होकर कचौड़ी गली में आकर मिलती है।
(52) शवशिवा काली गली- यह गली सोनारपुरा में स्थित बंगाली टोला इण्टर कालेज के सामने से प्रारम्भ होती है तथा पाण्डेय घाट तक जाती है। इसी गली में “शव शिवा काली” जी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।
(53) बड़ा गणेश वाली गली- यह गली लोहटिया क्षेत्र से प्रारम्भ होकर बड़ा गणेश मन्दिर तक जाती है। इस गली में गणेश जी का प्रसिद्ध मन्दिर है।
(54) कुंज गली- कुंज गली रानी कुआँ से प्रारम्भ होकर कचौड़ी गली में जाकर मिलती है। इस गली में विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ियों की गद्दियाँ हैं।
(55) भूलेटन गली- यह गली भूलेटन क्षेत्र से प्रारम्भ होकर दालमण्डी की गली से होते हुए घुघरानी गली के प्रारम्भ पर जाकर मिलती है।
उपसंहार:- इस प्रकार बनारस जहां अपने धार्मिक क्रियाएं ऐतिहासिक प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध है। यही कहा जा सकता है बनारस के लोए।
(गलियां बीच काशी है कि काशी बीच गलिया,
कि काशी ही गली है की गलियों की ही काशी है)
घाटो में बसता ठाठ जहाँ संतों का बसेरा है,
जहां धर्मो का ज्ञान है, जहां मोक्ष का चलता कारोबार जहां जन्म लिया
कई संतों ने जहाँ बनारस जीता जागता नाम वहाँ
बनारस की हर चीज देखते ही बनती ह।गलिया ओर घाट के लिए तो वहां का मुख्य केंद्र है बनारस या यह कह सकते हैं कि घाट और गलियां का ही शहर बनारस।
#सम्बंधित: Hindi Essay, हिंदी निबंध।