नारी शिक्षा का महत्व पर निबंध

नारी शिक्षा का महत्व ,
Importance of Women education in Hindi.

एक सभ्य समाज का निर्माण उस देश के शिक्षित नागरिको द्वारा होता है और नारी इस कड़ी का एक अहम् हिस्सा है। परिवार की छोटी छोटी इकाइयां मिलकर एक समाज का गठन करती हैं और परिवार की केंद्र बिंदु नारी होती है, यदि एक नारी शिक्षित होती है तो एक परिवार शिक्षित होता है और जब एक परिवार शिक्षित होता है तो पूरा राष्ट्र शिक्षित होता है।

एक महान विचारक रूसो ने कहा है,”यदि आप मुझे सौ आदर्श माताएं दे तो मैं आप को एक आदर्श राष्ट्र दूंगा “

परिवार में शिशु की पहली अध्यापिका या गुरु माँ होती है और जो प्रारंभिक शिक्षा शिशु अपने घर में ग्रहण करता है वो उसे दुनिया के किसी विद्यालय में प्राप्त नहीं हो सकती अतः मनुष्य के सर्वांगीण
विकास के लिए उसे शिक्षित होना आवश्यक है और जब बात नारी की आती है तो ये नितान्त आवश्यक हो जाती है।

संस्कृत में एक श्लोक है,”अथ शिक्षा प्रवश्यम:मातृमान पित्रमानाचार्यवान पुरुषो वेद:”

अर्थात् जब् तीन उत्तम शिक्षक एक माता, दुसरा पिता, और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा। यदि हम वर्तमान परिस्थिति कि चर्चा करे तो अब नारी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे निकल चुकी है, शिक्षित नारी आजकल के सभी क्षेत्रों में पदार्पण कर चुकी है, वह एक महान नेता, समाजसेविका, चिकित्षक, निदेशक, वकील आदि महान पदों पर कुशलता पूर्वक कार्य करके अपनी
अद्वितीय क्षमता को दिखा रही है।

भारत सरकार भी अनेक ऐसी योजनाए ले कर आयी है जो नारी को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं जैसे बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ योजना, कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना, राष्ट्रीय प्रोत्साहन योजना इत्यादि। ऐसा कहा जाता है की महिलाएं कुशल प्रसाशक होती है, भारत जिसे एक पुरुष प्रधान देश की संज्ञा दी जाती है उस देश का प्रतिनिधित्व यदि एक महिला करती है तो ये स्वयं में इस बात का प्रमाण है की शिक्षा एक ऐसा शस्त्र है जो नारी को इस काबिल बना देता है को वो किसी देश का प्रतिनिधित्व कर सके।

अभी हाल में भारत में हुए चंद्रयान-२ के प्रक्षेपण के लिए बनायीं गयी टीम का नेतृत्व महिलाओं ने किया था, ये सिर्फ इसलिए संभव हो पाया क्योकि उन्होंने सम्बंधित क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। एक नारी जीवनपर्यन्त बेटी, बहन, पत्नी एवं माँ जैसी किरदारों का निर्वाह करती है और इनका निर्वाह करते हुए जो कठनाईया आती हैं उनका सामना करने का आत्मबल उन्हे शिक्षा प्रदान करती है। शिक्षा नारी को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होती है और उसमे स्वालम्बन के गुणों का भी विकास करती है।

स्त्री हि ब्रह्म बभूविथ (ऋग्वेद )|

अर्थात् नारी स्वयं विदुषी होते हुए अपनी सन्ता को सुशिक्षित बनाती है।
स्वामी दयानन्द के अनुसार,”एक पुरुष के शिक्षित और सुसंस्कृत होने का अर्थ है अकेले उसी का उपयोगी बनना किन्तु एक स्त्री यदि शिक्षित, समझ्दार् और सुयोग्य है तो समझना चाहिये कि पुरे परिवार के सुसंस्कृत बनने का सृदृण आधार बन गया”  .

जहाँ शिक्षा का आभाव रहेगा वहां अज्ञान का अँधेरा छाया रहना स्वाभाविक है।  देश में, विश्व में मानव रत्नो का उत्पादन बड़े यही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है और इसकी पूर्ति सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत नारी के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता। किसी देश की नागरिक होने के नाते शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक स्त्री का मूल अधिकार है और जो देश की प्रगति, उन्नति एवं विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

लेखक :- जाग्रति अस्ताना


नारी शिक्षा का महत्व 500 – 600 words
Importance of women Education short paragraph

नारी शिक्षा का महत्त्व जहाँ तक शिक्षा का प्रश्न है यह तो नारी हो या पुरुष दोनों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा का कार्य तो व्यक्ति के विवेक को जगाकर उसे सही दिशा प्रदान करना है। शिक्षा सभी का समान रूप से हित-साधन किया करती है। परन्तु फिर भी भारत जैसे विकासशील देश में नारी की शिक्षा का महत्त्व इसलिए अधिक है कि वह देश की भावी पीढ़ी को योग्य बनाने के कार्य में उचित मार्ग-दर्शन कर सकती है।

बच्चे सबसे अधिक माताओं के सम्पर्क में रहा करते हैं। माताओं के संस्कारों, व्यवहारों व शिक्षा का प्रभाव बच्चों के मन-मस्तिष्क पर सबसे अधिक पड़ा करता है। शिक्षित माता ही बच्चों के कोमल व उर्बर मन-मस्तिष्क में उन समस्त संस्कारों के बीज बो सकती है जो आगे चलकर अपने समाज, देश और राष्ट्र के उत्थान के लिए परम आवश्यक हुआ करते हैं।

नारी का कर्त्तव्य बच्चों के पालन-पोषण करने के अतिरिक्त अपने घर-परिवार की व्यवस्था और संचालन करना भी होता है। एक शिक्षित और विकसित मन-मस्तिष्क वाली नारी अपनी आय, परिस्थिति, घर के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकता आदि का ध्यान रखकर उचित व्यवस्था एवं संचालन कर सकती है। अशिक्षित पत्नी होने के कारण अधिकांश परिवार आज के युग में नरक के समान बनते जा रहे हैं। अतः विद्वानों का कथन है कि गृहस्थी के कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है।

विश्व की प्रगति शिक्षा के बल पर ही चरम सीमा तक पहुँच सकी है। विश्वसंघर्ष को जीतने के लिए चरित्र-शस्त्र की आवयश्कता पड़ती है। यदि नारी जाति अशिक्षित हो, तो वह अपने जीवन को विश्व की गति के अनुकूल बनाने में सदा असमर्थ रही है। यदि वह शिक्षित हो जाए तो उसका पारिवारिक जीवन स्वर्गमय हो सकता है और उसके बाद देश, समाज और राष्ट्र की प्रगति में वह पुरुषों के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चलने में समर्थ हो सकती है। भारतीय समाज में शिक्षित माता गुरु से भी बढ़ कर मानी जाती है, क्योंकि वह अपने पुत्र को महान् से महान् बना सकती है।

आज स्वयं नारी समाज के सामने घर-परिवार, परिवेश-समाज, रीति-नीतियों तथा परम्पराओं के नाम पर जो अनेक तरह की समस्याएँ उपस्थित हैं उनका निराकारण नारी-समाज हर प्रकार की शिक्षा के धन से सम्पन्न होकर ही कर सकती है। इन्हीं सब बुराइयों को दूर करने के लिए नारी शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। सशिक्षा के द्वारा नारी जाति समाज में फैली कुरीतियों व कुप्रथाओं को मिटाकर अपने ऊपर लगे लाँछनों का सहज ही निराकरण कर सकती है।

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