प्रस्तावना
गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्यिक दुनिया के महान कवि थे। जिनकी कविताएं सौ वर्षों के बाद भी जनमानस का मार्गदर्शन कर रही है। तुलसीदास जी का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास था। तिथि के अनुसार उनका जन्म श्रावण शुक्ल को माना जाता है। हालांकि उनके जन्म के विषय में कई विद्वानों में मतभेद भी है। उन्होंने कई भारतीय महत्वपूर्ण तथा प्रसिद्ध पुस्तकों की रचना की। जिसके लिए वह समस्त हिंदुस्तानियों के लिए पूजनीय और स्मरणीय हैं।
तुलसीदास का जीवन परिचय
तुलसीदास के जन्म के विषय में कोई सटीक जानकारी नहीं पाई जाती है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास जी का जन्म 1599 ईसवी में, बांदा जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे था और माता का नाम हुलसी देवी था। तुलसीदास के माता पिता ने उनके जन्म को अशुभ बताते हुए उन्हें त्याग दिया था। जिस कारण उनका जीवन अत्यंत कष्ट व मुश्किलों से गुजरा था। बचपन में तुलसीदास के मुख से पहला नाम राम निकला, जिसके चलते लोग उन्हें रामबोला कहकर भी पुकारने लगे।
तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ था। अपनी पत्नी का स्नेह मिलने से तुलसीदास को उनसे बेहद मोह हो गया था। इस मोह में उन्होंने अपना कर्म धर्म भी त्याग दिया। अपने पति की इस दशा को देखकर रत्नावली ने उन्हें त्यागने का निर्णय ले लिया और उन्हें अपने कटु वचनों से सद्मार्ग की ओर अग्रसर किया। अपनी पत्नी की कटु टिप्पणी से प्रभावित होकर तुलसीदास ने राम भक्ति को ही अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बना लिया। इस लक्ष्य के सफर में ही उन्होंने पवित्र हिंदू ग्रंथ रामचरितमानस की भी रचना की।
तुलसीदास का साहित्य व समाज में योगदान
तुलसीदास जी ने समाज सुधारने का विशेष कार्य किया। उन्होंने हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के साथ-साथ एक समाज सुधारक के रूप में प्रशंसनीय काम किया। भारत की मध्ययुग जब कुप्रथा ने हिंदू समाज में प्रवेश किया तब इन प्रथाओं का विरोध तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा किया। इतना ही नहीं जब मूर्तियों को मुस्लिम शासकों द्वारा तोड़ा जा रहा था तब उस समय भी तुलसीदास जी ने अपनी भक्ति को बनाए रखा और समाज के अन्य लोगों को भी अपने धर्म के प्रति जागरूक किया। इस प्रकार समाज सुधारक और हिंदू समाज की रक्षा में तुलसीदास जी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
तुलसीदास की रचनाएं
तुलसीदास की रचना में रामचरितमानस सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख रचना है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई कविताओं की भी रचना की। उन्होंने अपनी रचनाओं में काव्य की सभी रसों को स्थान दिया। संस्कृत के साथ ही उन्होंने राजस्थानी भोजपुरी, बुंदेलखंडी प्राकृत अवधी ब्रज अरबी आदि भाषाओं में भी अपनी कविताओं की रचना की। तुलसीदास की रचनाओं में गीतावली, दोहावली, विनय पत्रिका, जानकी मंगल, रामलला नहचु, बरवाई, रामायण, वैराग्य, संदीपनी, पार्वती मंगल आदि प्रसिद्ध हैं। हालांकि इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार रामचरितमानस ग्रंथ रहा है।
निष्कर्ष
तुलसीदास जी एक महान कवि ही नहीं बल्कि एक सच्चे लोकनायक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं से कभी किसी संप्रदाय या विश्वास का खंडन नहीं किया। बल्कि उनकी रचनाओं ने सभी का सम्मान किया और निर्गुण और सगुण धारा की प्रशंसा भी की। इस प्रकार तुलसीदास जी भारतीय संस्कृति के संरक्षक थे। जो अपनी रचनाओं और कार्यों के लिए सदा सम्माननीय और स्मरणीय रहेंगे।