परोपकार पर निबंध

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परोपकार पर छोटे-बडे निबंध (Short and Long Essay on Philanthropy in Hindi)

#1. [100,150, 250 words] परोपकार पर निबंध

परिचय: परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी को अपने अन्दर रखना चहिये। इसे हर व्यक्ति को अपनी आदत के रूप में विकसित भी करनी चाहिए। यह एक ऐसी भावना है जिसके तहत एक व्यक्ति यह भूल जाता है की क्या उसका हित है और क्या अहित, वह अपनी चिंता किये बगैर निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है और बदले में उसे भले कुछ मिले या न मिले कभी इसकी चर्चा भी नहीं करता।

परोपकार की महत्वता:- जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है।

निष्कर्ष

पृथ्वी पर सभी प्राणी ईश्वर के अभिन्न अंग है। मनुष्य अपनी भावनाओ को प्रकट कर सकता है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो समाज के सभी जीवो के हित में कार्य कर सकता है। दुनिया से दुःख , गरीबी और दर्द दूर करने के लिए सभी मनुष्य को परोपकार के मार्ग पर चलना चाहिए। मनुष्य का जीवन तभी सफल हो पाता है , जब वह भले काम करता है। इसलिए बच्चो को भी बचपन से भले काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जब बच्चे अपने अभिभावकों को अच्छा कार्य करते हुए देखेंगे , तो वह भी एक अच्छे और परोपकारी इंसान बनेगे।

#2.[350 words] परोपकार पर निबंध.

परोपकार शब्द का अर्थ है दूसरों का भला करना। अपनी चिन्ता किए बिना, शेष सभी (सामान्य-विशेष) के भले की बात सोचना, आवश्यकतानुसार तथा यथाशक्ति उनकी भलाई के उपाय करना ही परोपकार कहलाता है। परोपकार के लिए मनुष्य को कुछ-न-कुछ त्याग करना पड़ता है।

परोपकार की यह शिक्षा हमें प्रकृति से मिली है। प्रकृति के प्रत्येक कार्य में हमें सदैव परोपकार की भावना निहित दिखाई पड़ती है। नदियां अपना जल स्वयं न पीकर दूसरों की प्यास बुझाती हैं, वृक्ष अपने फलों को दूसरों के लिए अर्पण करते हैं, बादल पानी बरसा कर धरती की प्यास बुझाते हैं। गऊएं अपना दूध दूसरों में बांटती हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा भी अपने प्रकाश को दूसरों में बांट देते हैं। इसी प्रकार सज्जनों का जीवन परोपकार में ही लगा रहता है।

यदि हम अपने प्राचीन इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हमें अनेक ऐसे उदाहरण मिलेंगे जिनसे ज्ञात होता है कि किस तरह यहां के लोगों ने परोपकार के लिए अपनी धन-सम्पत्ति तो क्या अपने घर-द्वार, राजपाट और आवश्यकता पड़ने पर अपने शरीर तक अर्पित कर दिए। महर्षि दधीचि के उस अवदान को कैसे भुला सकते हैं जिन्होंने देवताओं की रक्षा के लिए अपने प्राण सहर्ष ही न्यौछावर कर दिए थे अर्थात् उनकी हड्डियों से वज्र बनाया गया जिससे वृत्रासुर राक्षस का वध हुआ। राजा शिवि भी ऐसे ही परोपकारी हुए हैं, उन्होंने कबूतर के प्राणों की रक्षा के लिए भूखे बाज को अपने शरीर का मांस काट-काट कर दे दिया था।

हम भी छोटे-छोटे कार्य करके अनेक प्रकार परोपकार कर सकते हैं। भूखे को रोटी खिलाकर, भूले-भटके को राह बतला कर, अशिक्षितों को शिक्षा देकर, अन्धे व्यक्ति को सड़क पार करा कर, प्यासे को पानी पिला कर, अबलाओं तथा कमजोरों की रक्षा करके तथा धर्मशालाए आदि बनवाकर परोपकार किया जा सकता है।

परोपकार की महिमा अपरम्पार है। परोपकार से आत्मिक व मानसिक शान्ति मिलती है। परोपकारी मनुष्य मर कर भी अमर रहते हैं। दानवीर कर्ण, भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक, महर्षि दयानन्द, विनोबा भावे, महात्मा गांधी आदि अनेक महापुरुष इसके उदाहरण हैं। परोपकार के द्वारा सुख, शान्ति, स्नेह, सहानुभूति आदि गुणों से मानव-जीवन परिपूर्ण हो सकता है। सच्चा परोपकार वही है जो कर्त्तव्य समझकर किया गया हो। अतः परोपकार ही मानव का सबसे बड़ा धर्म है।

-:धन्यवाद :-


#3. [600 words] परोपकार पर निबंध

प्रस्तावना:- परोपकार शब्द ‘पर + उपकार‘ दो शब्दों के मेल से बना है। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों का अच्छा करना। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों की सहयता करना। परोपकार की भावना मानव को इंसान से फरिश्ता बना देती है। यथार्थ में सज्जन दूसरों के हित साधन में अपनी संपूर्ण जिंदगी को समर्पित कर देते है। परोपकार के समान कोई धर्म नहीं। मन, वचन और कर्म से परोपकार की भावना से कार्य करने वाले व्यक्ति संत की श्रेणी में आते है। ऐसे सत्पुरुष जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों पर उपकार करते है वे देवकोटि के अंतर्गत कहे जा सकते है। परोपकार ऐसा कृत्य है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है।

परोपकार की महत्वता:- जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है।
गोस्वामी तुलसीदास ने परोपकार के बारे में लिखा है.

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।”

दूसरे शब्दों में, परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है। इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है। इस प्रकार यह ईश्वर प्राप्ति का एक सोपान भी है।

भारतीय संस्कृति का मूलाधार: भारतीय संस्कृति की भावना का मूलाधार परोपकार है। दया, प्रेम, अनुराग, करुणा, एवं सहानुभूति आदि के मूल में परोपकार की भावना है। गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है इन महापुरुषों ने इंसान की भलाई के लिए अपने घर परिवार का त्याग कर दिया था।

प्रकृति में परोपकार का भाव: प्रकृति मानव के हित साधन में निरंतर जुटी हुई है। परोपकार के लिए वृक्ष फलते – फूलते हैं, सरिताये प्रवाहित है। सूर्य एवं चंद्रमा प्रकाश लुटाकर मानव के पथ को आलोकित करते है। बादल पानी बरसाकर थे को हरा-भरा बनाते हैं, जो जीव- जंतुओं को राहत देते हैं। प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है- नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष धूप में रहकर हमें छाया देता है, चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है।

परोपकार से लाभ: परोपकारी मानव के हृदय में शांति तथा सुख का निवास है। इससे ह्रदय में उदारता की भावना पनपती है। संतों का हृदय नवनीत के समान होता है। उनमे किसी के प्रति द्वेष तथा ईर्ष्या नहीं होती। परोपकारी स्वम् के विषय में चिंतन ना होकर दूसरों के सुख दुख में भी सहभागी होता है। परोपकार की ह्रदय में कटुता की भावना नहीं होती है। समस्त पृथ्वी ही उनका परिवार होती है। गुरु नानक, शिव, दधीचि, ईसा मसीह, आदि ऐसे महान पुरुष अवतरित हुए जिन्होंने परोपकार के निमित्त अपनी जिंदगी कुर्बान कर दिया।

उपसंहार:- परोपकारी मानव किसी बदले की भावना अथवा प्राप्ति की आकांक्षा से किसी के हित में रत नहीं होता, वरन् इंसानियत के नाते दूसरों की भलाई करता है। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया “ के पीछे भी परोपकार की भावना ही प्रतिफल है। परोपकार सहानुभूति का पर्याय है। यह सज्जनों की विभूति होती है। परोपकार आंतरिक सुख का अनुपम साधन है। हमें “स्व” की संकुचित भावना से ऊपर उठा कर “पर” के निमित्त बलिदान करने को प्रेरित करता है।

इस हेतु धरती अपने प्राणों का रस संचित करके हमारी उदर पूर्ति करती है मेघ प्रतुपकार में पृथ्वी से अन्य नहीं मांगते। वे युगो – युगो से धरती के सूखे तथा शुष्क आँगन को जलधारा से हरा भरा तथा वैभव संपन्न बनाते हैं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की हमे परोपकार करने की निम्नलिखित शब्दों में प्रेरणा दे रहे है वो इस प्रकार है।

“यही पशु प्रवृत्ति है कि आप – आप ही चरे।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।”

#4. [800+ Words] परोपकार का महत्व निबंध Paropkar par nibandh

प्रस्तावना: परोपकार यानी दूसरो  का भला करना। पर + उपकार = परोपकार। यह दो शब्दों को जोड़कर परोपकार शब्द बनता है।  इंसानियत और मानवता की भावना परोपकार कहलाता है। मनुष्य एक समाजिक प्राणी है। जब किसी को मदद की ज़रूरत होती है और कोई भला इंसान उसकी सही समय पर मदद करता है , उसे परोपकार कहते है।  परोपकारी व्यक्ति निस्वार्थ रूप से दूसरे लोगो की सेवा अथवा सहायता करता है।  उसके मन में सबके प्रति प्रेम भावना रहती है। वह किसी भी आदमी को परेशानी में नहीं देख सकता है। परोपकार व्यक्ति समाज में प्रेम सन्देश और भाईचारा फैलाता है। एक मनुष्य तभी एक सच्चा मनुष्य कहलाता है , जब वह दूसरो का भला करता है।

प्रकृति में भी सूर्य गर्मी और प्रकाश , पृथ्वी को देता है।  इसकी वजह से हम सब प्राणी जिन्दा है। आसमान में छाये  बादल पृथ्वी पर वर्षा करते है।  इससे सभी प्राणियों को जल प्राप्त होता है।  अर्थात , सृष्टि भी इसी प्रकार से निर्मित है और परोपकार की भावना का समर्थन करती है। परोपकार की भावना , लोगो में भाईचारे को बढ़ावा देती है। किसी का भला करने से मन को जो शान्ति मिलती है , उसे बयान नहीं किया जा सकता है। परोपकार करने से मनुष्य के मन को संतुष्टि मिलती है।

किसी  गरीब आदमी के बेटे की शिक्षा के लिए आर्थिक मदद करना या तेज़ धूप और गर्मी में प्यासे को ठंडा पानी पिलाना , परोपकार है। मनुष्य के रूप में हम जन्म इसलिए लेते है ताकि हम समाज में लोगो की सहायता  कर सके। हमे सैदव यह चेष्टा करनी चाहिए कि हमारे दरवाज़े पर अगर कोई व्यक्ति किसी मुसीबत में हो तो जितना हमसे हो सके , हम उसकी मदद करे। दान देने के लिए धनवान होने की ज़रूरत नहीं होती है , सिर्फ उसकी नीयत ही काफी होती है।

परोपकार करने से मनुष्य पुण्य करता है। धर्मशाला , मुफ्त चिकित्सा केंद्र में बहुत लोग भोजन , कपड़े , दवाईयां इत्यादि का दान करते है। यह परोपकार कहलाता है। सबका भला करने से मन में उत्पन्न द्वेष कम हो जाते है। समाज में  झगड़े खत्म हो जाते है। मनुष्य सिर्फ ज़रूरतमंद लोगो का ही नहीं बल्कि पशुओं की भी देखभाल करते  है। गर्मियों के समय पक्षिओं को पानी नहीं मिल पाता है।  ऐसे में कुछ लोग अपने छतों पर पानी का पात्र रख देते है।  इससे पक्षियों की प्यास बुझ जाती है। ऐसे परोपकार मनुष्य कर सकते है।  भूखे को खाना और प्यासे को पानी पीला सकते है।

मानवता ही परोपकार है। जिस इंसान में मानवता की भावना नहीं है , वह इंसान कहलाने योग्य नहीं है। मानवता की भावना मनुष्य को सभी प्राणियों से अलग बनाती है। परोपकार करने के कई तरीके है। किसी गरीब की सहायता करना , उसे काम पर रखना , रोजगार देना और भोजन देना , परोपकार है।  कोई रोगी अपना शुल्क अस्पताल में चुकाने में असमर्थ है , उसकी आर्थिक मदद करना , परोपकार है। लोगो को हमेशा दूसरो के प्रति सहानभूति , दयाभाव रखना चाहिए , तभी एक अच्छे समाज का निर्माण होता है।

किसी भी ज़रूरतमंद आदमी को संकट में पाकर , उसकी तुरंत मदद करना , एक जिम्मेदार और परोपकारी मनुष्य का कर्त्तव्य है। अगर कोई गलत और बुरे पथ पर चल रहा है , उसे सही राह दिखाना , परोपकारी मनुष्य का दायित्व है।  किसी भी परेशान आदमी के दुःख को बाँटना , उसका साथ देना , उसे समझाना इत्यादि परोपकार के विभिन्न रूप है।

मानव को अपनी प्रगति और समाज  में समृद्धि  लाने  के लिए परोपकार की आवश्यकता है। समाज में रह रहे सभी लोगो को एक दूसरे के प्रति दयाभाव रखना चाहिए। समाज में लोगो को एक दूसरे की  चिंता करनी होगी , तभी एक अच्छे , सभ्य और संवेदनशील समाज का गठन हो पायेगा। हमेशा समाज में लोगो को नेक काम करने होंगे, तभी एक सकारात्मक समाज बनेगा।  अगर  मनुष्य स्वार्थी बनेगा तो एक अच्छा समाज का निर्माण ना हो पायेगा। मनुष्य को जिन्दगी में अच्छे कर्म करने चाहिए। अच्छे कर्म और परोपकार की भावना लोगो को अच्छा इंसान बनाती है।

परोपकार करने से मनुष्य के आत्मा को शान्ति मिलती है। जब वह सभी गरीबो और ज़रूरतमंदो की मदद करते है , तो उन्हें उनका आशीर्वाद मिलता है।  उनके मन को तसल्ली मिलती है कि अगर दुनिया में आये है , तो अच्छे कार्य करने चाहिए।जो लोग परोपकार करते है , समाज उनका आदर सम्मान करते है। उनकी हर जगह तारीफ़ की जाती है। सभी लोग उन्हें अपने दुआओं में याद करते है। परोपकार से जब लोगो की प्रगति होती है , तो एक उन्नत समाज भी बनता है। दूसरे व्यक्ति परोपकार करने वाले  व्यक्ति की इज़्ज़त करते है।  अन्य लोगो के लिए परोपकारी व्यक्ति का जीवन प्रेरणादायक बन जाता है। परोपकार करने वाले इंसान के जीवन में कभी दुःख नहीं होता है क्यों कि उनकी मुसीबत में भी लोग उनके साथ खड़े रहते है। यह एक चक्र जैसा  है। कई बार लोग धन देकर भी इतना सम्मान हासिल नहीं कर पाते है , जो परोपकारी व्यक्ति प्राप्त कर लेता है।

निष्कर्ष

पृथ्वी पर सभी प्राणी ईश्वर के अभिन्न अंग है। मनुष्य अपनी भावनाओ को प्रकट कर सकता है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो समाज के सभी जीवो के हित में कार्य कर सकता है। दुनिया से दुःख , गरीबी और दर्द दूर करने के लिए सभी मनुष्य को परोपकार के मार्ग पर चलना चाहिए। मनुष्य का जीवन तभी सफल हो पाता है , जब वह भले काम करता है। इसलिए बच्चो को भी बचपन से भले काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जब बच्चे अपने अभिभावकों को अच्छा कार्य करते हुए देखेंगे , तो वह भी एक अच्छे और परोपकारी इंसान बनेगे।

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