पर्वतीय(पहाड़ी ) प्रदेश की यात्रा -निबंध

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पर्वतीय(पहाड़ी ) प्रदेश की यात्रा पर निबंध (“माँ वैष्णो देवी”)

प्रस्तावना:- प्रकृति के स्वरूप एक नही अनेक है। प्रकृति की यह अनेकता उसकी विविधता में बटी हुई बड़ी ही आकर्षक और लुभावनी है। इस विशेषता को लेकर प्रकृति अपने सहचर मानव को निरंतर परिवर्तन की लीला दिखा दिखाकर बार बार मुग्ध करती है। मानव भी स्वभावतः उसके इस अदभुत आकर्षक से स्वयं को बचा नही पाता है। वह कभी प्रकृति के मैदानी ओर सपाट स्वरूप को देखने के लिए मचल उठता है, तो कभी ऊँची-ऊँची पर्वतमालाओं को निहारने के लिए चल पड़ता है। वह कभी भयंकर वन-वनांचल में भटकते हुए नही डरता है, तो कभी रेगिस्तान की तपती और उड़ती हुई रेत में चलते-चलते नही थकता है। प्रकृति की इस विशेषता से अलंकृत मेरा देश भारत विशव का सबसे अनोखा देश है। यहाँ प्रकृति के जो अदभुत और बेमिसाल रूप-प्रतिरूप दिखाई देते है, वे सचमुच में विशव की सर्वाधिक रमणीय ओर ह्रदयस्पर्शी स्वरूप है। प्रकृति की इस अनुपम शोभमय पिटारी में पर्वतीय क्षेत्रों का आकर्षक सर्वाधिक अधिक है। इन क्षेत्रों को देखने और भृमण करने के मेरा मन बेताब हो उठा।

पर्वतीय प्रदेश में जाने की तैयारी:- ग्रीष्मावकाश हो चुका था। अबकी बार ग्रीष्मावकाश हम कहाँ बिताए। पिछली बार अपने चचेरे भाई के पास बम्बई में पुरा ग्रीष्मावकाश बिताया था। उसके लिए तो हम ने ग्रीष्मावकाश से पहले ही तय कर लिया था, कि ग्रीष्मावकाश कहां व कैसे बिताना है। इस ग्रीष्मावकाश को बिता लेने की बात सोचते सोचते हमारी मित्र-मंडली ने मां वैष्णवी देवी के दर्शन के लिए कार्यक्रम निश्चय कर दिया। इस निश्चय को सुनकर मन खिल उठा चलो ग्रीष्मावकाश का कुछ समय तो कटेगा।

हम पाँच मित्रो के साथ माँ वैष्णो देवी की यात्रा के लिए आनन-फानन में कार्यक्रम बना डाले। उनके अनुसार हमने पूजा एक्सप्रेस ट्रेन में अपनी-अपनी सीटे सुरक्षित करवा ली। निशिचित समय पर हम यात्रा के लिए घर से निकलकर पुरानी दिल्ली रेल्वे स्टेशन पर पहुँच गए। वहाँ निशिचत समय पर पूजा एक्सप्रेस ट्रेन आयी। हम मित्रगण अपनी-अपनी सुरक्षित सीट पर “जय माता की” का गान करते हुए बैठ गए। समय से ट्रेन जम्मू के लिए चल पड़ी। हम लोगों ने चलती हुई ट्रेन को देखकर फिर वही जयगान किये–“जय माता की”।

पर्वतीय प्रदेश की यात्रा का वर्णन:- यो तो गाड़ी के प्रायः सभी यात्री ‘वैष्णो माँ’ के दर्शनार्थी ही थे। तथापि कुछ स्थानीय भी थे, जिनके कारण अस्वाभाविक भीड़ हो गयी थी। जब कभी “बोले जय माता की” और फिर “जय माता की” “जय माता की”  का भक्ति स्वर मन के सभी विकारों को धोने लगा था। इस तरह भागती-दौड़ती हुई वह ट्रेन 12 बजे मध्यान्ह में जम्मू रेलवे प्लेटफॉर्म पर आकर रुक गयी। वहाँ से हम लोगो ने कटरा के लिए बस लिया। हमारी बस टेडी-मेढ़ी पहाड़ी घुमाव चढ़ाव और उतार के साथ-साथ बलखाती हुई, 1 बजे मध्यान्ह कटरा पहुच गयी। बीच-बीच मे पहाड़ी दर्शय मन को अनुमान से कही अधिक रमाते रहे। कटरा पहुँच करके हम लोग ‘चाचा’ नामक धर्मशाला में ठहर गये। थोड़ी देर विश्राम करके। फिर नाश्ता किया। स्नान करके कपड़े बदले। विचार-विमर्श करके माँ के दर्शन के लिए “बोलो जय माता दी”  के भक्ति -स्वर के साथ चल दिये। सबसे अधिक उत्साह और उमंग की बात थी कि हम लोग ही नही ,अपितु सैकड़ो दर्शनार्थि बड़ी खुशी से उछलते-भागते हुए “बोलो जय माता दी” “’जय माता दी”  का भजन स्वर अलापते हुए आगे-पीछे आते-जाते हुए दिखाई दे रहे थे।

चलते-चलते मनमोहनी पहाड़ी दर्शय बार-बार अपनी ओर खींच रहे थे। गगन को छू लेने की तमन्ना से सिर उठाई हुई पहाड़ी चोटियों के ऊपर तने और सधे हुए पेड़-पौधों की उच्चाई रोमहर्षक होने के साथ भयप्रद भी कम नही थी। दूसरी और हजारों मीटर की गहरी खाइया तो निश्चय रही परंतु हमारी हिम्मत को ललकार रही थी। चलते-ठहरते हुए हम सब उसी स्फुर्ति और उमंग से आगे बढ़ते जा रहे थे। यही भक्ति-स्वरों ने “जय माता की” “बोलो जय माता की” हम लोंगो के पैरों में मानो पँख लगा दिए हो। इस तरह चाल बढ़ाते हुए और दर्शन की लालसा के साथ हम लोग अर्द्धकुवारी पहुँच गए। वह स्थान माँ के पावन-स्थल और कटरा की शुरुआत का आधा भाग है। इस स्थान पर हम रात को 12 बजे पहुँच गये।

वहाँ पर करीब दो घण्टे के विश्राम के बाद फिर हम अपने गन्तव्य की ओर “जय माता दी” का जय स्वर करते हुए उसी उमंग से बढ़ते गए। चलते-चलाते हुए और प्रकृति की अदभुत रचना पहाड़ी दृश्यों को निहारते हुए हम सुबह 7 बजे माँ के पावन-मंदिर के पास पहुंचकर खुशी से उछलते हुए जोर-जोर से अलापने लगे- “जय माता की”  प्यार से बोलो “जय माता दी”। वहाँ पर हम लोग ने अपने साथ लिए हुए शाँले, कपड़े वगैरह जमा करवा दिए। फिर स्नान आदि करने के बाद प्रसाद लेकर दर्शन की पर्ची के साथ पंक्ति में खड़े हो गए।

पंक्ति सरकती गयी। हम माँ के निकट पहुँचते गए। अन्त मे दर्शन की अभिशामयी लहर लहराती हुई माँ के श्रीचरणों में समर्पित हो गयी। माँ का दर्शन करके मानो हमे नव जीवन मिला। हमारे सभी पाप धुल गए। हम धन्य-धन्य हो उठे। माँ के दर्शन के बाद विधि-आनुसार हम काफी ऊँचाई चढ़कर के भैरव मंदिर गए। वहाँ पर भैरव नाथ के दर्शन करके हम कटरा वापस आने लगे। रास्ते मे कुछ खाते-पीते हुए बड़ी तेजी से लौटने लगे। उस समय पैर मानो पहिये-सा तेजी से भाग रहे थे। इसका मुख्य कारण था। पहाड़ी की तीव्र ढलान। कटरा पहुँचते – पहुँचते रात के 8 बज गए। खाना खाकर हम लोग सो गए। भीषण गर्मी के बावजूद सर्दी काफी लग रही थी। दूसरे दिन हम लोग कटरा मे कुछ आवश्यक सामान लिए। फिर बस से जम्मू और जम्मू से दिल्ली ट्रेन से वापस लौट आये।

उपसंहार:- इस प्रकार हम “वैष्णो देवी माँ” के दर्शन करके घर वापस लौट आए और ऐसा अनुभव हुआ मानो शरीर का सारा दर्द  सारी परेशानी दुख दर्द सब मानो सिर पर एक बोझ की तरह थे जो “माँ वैष्णो देवी” के दर्शन करके सब उतर गए। घर आकर ऐसा अनुभव हुआ मानो हमने हर पल एक ऐसे आनंद का अनुभव किया जैसे माता रानी हर पल हर क्षण हमारे साथ ही थी और इस तरह हम क्षण-क्षण आनन्द से फुले नही समा रहे थे। “जय माता दी”

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