जीना मुश्किल करती महँगाई

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संघर्ष का दूसरा नाम ही जीवन है। मनुष्य को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ समस्याएँ अल्पकालिक होती हैं तो कुछ आजीवन चलती हैं। गरीब और मध्यम वर्ग के लिए ऐसी ही दीर्घकालिक परेशानी का नाम है- महँगाई

वर्तमान में निम्न और मध्यमवर्ग महँगाई से सबसे ज्यादा परेशान है। यह मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, और मकान पर सर्वाधिक चोट करती है। सरकारी आँकड़ों में यह भले ही स्थिर दिखे या अल्पकाल के लिए कुछ कम हो पर सत्य तो यह है कि निरंतर बढ़ती ही रहती है। सरकार भी अपना पल्ला झाड़ने के उद्देश्य से पहले तो मौसम, प्रकृति आदि के प्रतिकूल होने का बहाना बनाती है, फिर इसका दोष दूसरों पर डालकर अपना पल्ला झाड़ लेती है।

चुनाव करीब आते ही हमारे तथाकथित भाग्यविधाता गरीबों का वोट पाने के लालच में महँगाई कम करने का दिवास्वप्न दिखाते हैं, पर चुनाव जीतते ही अपनी सुविधाएँ अपना वेतन-भत्ता बढ़ाकर उसका भार आम जनता पर डाल देते हैं। चुनाव से पूर्व विभिन्न राजनैतिक पार्टियाँ औद्योगिक इकाइयों से गुप्त से चंदे के नाम पर मोटी रकम वसूलती हैं। चुनाव के बाद इन इकाइयों के मालिक अपने उत्पादों पर मनमर्जी मूल्य वृद्धि करते हैं। उन्हें कोई रोकने वाला नहीं होता है क्योंकि रिश्वत रूपी चंदा पहले ही दिया जा चुका होता है।

महँगाई बढ़ने का प्रमुख कारण है-माँग और पूर्ति के बीच असंतुलन होना। जब किसी वस्तु की आपूर्ति कम होती है और माँग बढ़ती है तो वस्तुओं का मूल्य स्वयमेय बढ़ जाता है क्योंकि अधिक क्रयशक्ति रखने वाले लोग उसे ऊँचे दाम पर खरीद लेते हैं। प्राकृतिक प्रकोप जैसे—बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि भूकंप आदि महँगाई बढ़ाने में सहायक होते हैं। इनसे खेती की उपज घट जाती है और खाद्यान्न व अन्य वस्तुएँ बाहर से मँगानी पड़ती हैं। जमाखोरी, काला बाज़ारी आदि मानव निर्मित कारण हैं। इसके अलावा दोषपूर्ण वितरण-प्रणाली, असफल सरकारी नियंत्रण तथा मनुष्य की स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति भी इसके लिए उत्तरदायी हैं।

महँगाई रोकने के लिए सरकार और व्यापारी वर्ग दोनों को आगे आना होगा। सरकार को वितरण प्रणाली सुव्यवस्थित तथा सुचारु बनानी होगी। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित क्षेत्रों से दैनिकोपयोगी वस्तुएँ शीघ्रातिशीघ्र उपलब्ध करानी होंगी। जमाखोरों और कालाबाजारी करने वाले पर कड़ा जुर्माना लगाते हुए कठोर दंड का प्रावधान होना चाहिए। इसके अलावा सरकार को अपने खर्चे में कटौती करना चाहिए। धनाढ्य वर्ग को अपनी विलासितापूर्ण जीवन शैली में बदलाव लाना चाहिए तथा ऐसे लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए जो अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्षरत हैं।

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