कलम की कहानी :कलम की जबानी

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कलम की कहानी :कलम की जबानी

[Story Of Pen]

प्रस्तावना:- यो तो सबके जीवन की कोई न कोई कहानी होती है। किसी की लंबी कहानी होती है, तो किसी की छोटी। इसी तरह से किसी के जीवन की कहानी विशिष्ट कहानी होती है। इस प्रकार कुछ के जीवन की कहानी कुछ अतिमहत्वपूर्ण होती है जो दूसरे के जीवन को विशेष रूप से प्रभावित करती है। इस प्रकार की कहानी वास्तव में बहुत ही रोचक, भावप्रद ओर ह्रदयस्पर्शी होती है। इस प्रकार कहानी और कहानियों में अदभुत रूप से कलम की कहानी है। इसकी कहानी वास्तव में एक प्रभावशाली कहानी है। यह इसलिए भी की यह सबकी कहानी लिखने वाली कलम की स्वयममेव है। इसलिए इससे बढ़कर और कोई कहानी शायद ही है या न हो।

आरम्भ:- कलम की कहानी किसी से कहलवा कर या लिखवा कर कलम की जबान से ही सुनि जाए या उससे ही लिखवाई जाय, तो यह सर्वाधिक रोचक, सरस् ओर अदभुत कहानी हो सकती है। अतएव अब हम चुपचाप कलम की कहानी उसकी जबानी से सुनना बेहतर समझ रहे है। लीजिए, ध्यान से सुनिए और अपने साथियों को भी सुनाइये।

आधी रात का समय है। मैं अपना अधूरा उपन्यास पूरा करने के लिए धड़ाधड़ कलम चला रही हूँ। लिखने में इतना मशगूल हो गई हूँ कि कलम को कभी इधर घुमाकर तो कभी उधर। कभी तिरछी करके तो कभी सीधी-आड़ी या पट करके लिख रही हूँ। बस लिखते जाना है। कलम की दशा क्या हो रही है और होनी चाहिए, मुझे इसका कतई ध्यान नहीँ आ रहा है। बस ध्यान था कि अधिक से अधिक रुप में उपन्यास पूरा हो जाये। अचानक धीमी किंतु मधुर ध्वनि कानों में गूंज गयी। इसे सुनकर में चौक गई। उधर-इधर देखा, कहि कोई नही था। चारो ओर सन्नाटा छाया हुआ था। केवल झींगुरों की झनझनाहट और झनकार ही चारो ओर फैल रही थी। इसके अतिरिक्त कहि कुछ न सुनाई पड़ता और न कोई दिखाई ही देता था। फिर मैंने ध्यान नही दिया और लिखने में मशगूल हो गयी । फिर वही आवाज़ आयी। ध्यान देने पर मुझे सुनाई पड़ा कि मेरे हाथ की कलम ही मुझ से कुछ कहने के लिए मचल रही है। उसको इस प्रकार देखकर में एकदम चकित हो गयी। लेकिन कलम ने मेरी इस दशा पर कोई ध्यान नही दिया। वह मचलती हुई मुझ से कहने लगी। मेरे द्वारा ही तुम न जाने क्या-क्या और किस की बाते और कहानी सुनाते रहते हो। क्या तुम मेरी कहानी नहीं सुनोगे। इससे में ओर चकित हो गई। मैने आश्चर्यपूर्वक कलम से कहा,“क्या तुम्हारी भी कोई कहानी है? तुम तो विभिन्न्न धातु-पदार्थो से बनी हुई किसी की भावना को व्यक्त करने वाली कलम के नाम से जानी जाती हो। फिर तुम्हारी क्या कहानी है और हो भी क्या सकती है?” यह सुनते ही कलम ने फिर अपनी बात कहनी शुरू कर दी “क्यों? मेरी कहानी क्यों नहीँ हो सकती है। जब मैं दुसरो की कहानी कहती हूं, तो मेरी कहानी  क्यों  नही हो सकती है?” मैने कहा, फिर तुम्ही बताओं, तुम्हारी क्या कहानी है ? मैं सचमुच तुम्हारी कहानी, तुम्हारी जबानी सुनना चाहती हुँ। “कलम ने मेरी अभिरुचि को देखकर कहा – ‘तुम मेरी कहानी सुनना चाहती हो, तो लो ध्यान से सुनो’।

कलम के विभिन्न रूप:- ” मेरी कहानी मानव की आदि सभ्यता के साथ ही आरम्भ हुई है। इस तरह मानव का ज्ञान जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगा, वैसे-वैसे उसने अपनी भावनाओं को अंकित करने के लिए कुछ चिन्ह अपनाने शुरूकर दिए। इन्हें लिपि नाम कुछ समय बाद दिया गया। यहीं से मेरी कहानी शुरू हो गयी। इस तरह मैने पाषाण -युग में पत्थरों पर बड़ी कठिनाई से मानव की भावनाएं अंकित करने के लिए अपनी पूरी हिम्मत जुटायी थी। इसके बाद पक्षियो के पंख ही मुझे साधन के रूप में मिले थे। पक्षियों के पंख से ही मैं अपने नाम अर्थात लेखनी (कलम) को उस युग मे सार्थक करने में जुट गई थी। इसमें भी एक कठिनाई यह थी कि स्याही मैं कम ले पाती थी। इसका मुख्य कारण यही था कि मेरा मुँह बहुत ही संकरा ओर पतला हुआ करता था। मैं देर तक इसीलिए नहीं चल पाती थी। सरकते-सरकते मेरे होंठ सुख जाते थे। मुंझे फिर से शीघ्र की स्याही को मुंह मे भरना पड़ता था। जो कुछ  भी हो, मैं इस बात के लिए सौभाग्यवती रही कि मुंझे  ऋषियों-मुनियों ने सादर अपनाया था। मैं तब तक एक अति पवित्र ऋषि कन्या की तरह तपस्वी बनी हुई थी। इस समय ही मैने सभी वेद-पुराण आदि ग्रन्थो को लिखे, जो अब तक पूज्य-प्रतिष्ठित है।

सभ्यता के बढ़ने पर मेरा विकास हुआ। मैं पूर्व की अपेक्षा सुदृढ़ ओर सुव्यवस्थित हुई। अपने पंख रूप को बदलकर मैने बॉस ओर फिर शरियत-शरकंडा के रुप आकार ढल गयी। इस अवस्था मे बहुत दिनों तक रही है। इस दशा को प्राप्त करके मैं ने अनेक गर्न्थो-महाग्रन्थों सहित काव्यों महाकाव्यों को रच डाला।

आधुनिक सभ्यता के इस चरमकाल में मेरा भी चरम विकास हुआ है। वाटरमैन की कल्पना ने मेरे लिए कमाल ही कर डाला। उसने रबड़ की एक ट्यूब को निम्ब को पीछे जोड़कर  पेन का पुराना रूप तैयार कर लिया। यह रूप बहुत दिनों तक चलता रहा। कुछ समय बाद ट्यूब की जगह रिफिल का प्रयोग किया गया। यह भी सफल रहा। इसके साथ मेरे लिए विभिन्न प्रकार की स्याही इजाद की गयीं। इससे मुझे बहुत बड़ी सुविधा हुई। फलतः मैं पूर्वापेक्षा तेज होकर पन्नो की सतह सरकती हुई सबके मनको मोहने लगी। अब तो मैं विभिन्न धातुओं से निर्मित होकर  बहुत अधिक रूपवती व आकर्षक लगने लगी हूँ। सम्पन्न लोंगो के लिए मेरे रूप बहुमूल्य से बहुमूल्य धातुओं से बनने लगे है। अतएव मुझे खरीदने में ये कभी कोई संकोच नही करते है। ये मुझे बड़े शान से खरीदते हैं। मुझे सजा कर रखने में बड़े ही गर्व का अनुभव करते हैं।

उपसंहार:- इस प्रकार मेरी कहानी शुरू से अब तक रही है। यह कहकर कलम चुप हो गयी। मैं चकित होकर इधर-उधर देखते रह गई। लेकिन वह आवाज फिर नहीं आयी। अब मैं  ये सोचते हुए सो गई कि वास्तव मैं कलम की कहानी उसकी जवानी की विचित्र कहानी है।

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1 thought on “कलम की कहानी :कलम की जबानी”

  1. मुझे इस कहानी में कलम की चर्चा चली है लेकिन मुझे इस कहानी में छोटी सी त्रुटि रह गई की कलम कौन से ईसवी से आरंभ हुआ है और इसके लेखक कौन हैं मुझे माफ कीजिएगा क्यों मुझसे गलती हुई होगी कॉमेंट में तो इसके लिए मैं शशि आनंद मैं आपका सदा आभारी रहूंगा मैं यह कहना चाहता हूं कि कलम कैसे प्राप्त हुआ कल मुझे क्या सिखलाती है और और किस रास्ते पर ले जा ना चाहती है मुझे रिप्लाई देने की कोशिश करें

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