रुपए की आत्मकथा पर निबंध

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प्रस्तावना:- मैं रुपया अर्थात रूपवान किसको प्रिय नहीं हूं। छोटे से परंतु संतुलित एवं सुदृढ़ आकर वाला, स्वरूप परिवर्तन का शोकिन मैं किसी को महत्व नहीं देता हूं । यदि मैं स्वम् से महान खोजु भी तो ,है ? सभी मेरे भक्त हैं ।याचक है,सेवक है। मेरे कारण प्राचीन से प्राचीन परंपरा ,बड़े से बड़े जीवन मूल्य ,घनिष्ठ से घनिष्ठ संबंध ताक पर रख दिए जाते हैं। संसार में मनुष्य मुझसे साक्षात्कार करने में अपना जीवन तक गवा रहे हैं ।उनमें से काफी मुझ तक आने से पूर्व ही विश्व सर विदा ले लेते हैं इस प्रकार मेरा प्रभाव अत्यंत व्यापक है।

मेरा नाम

इस जगत में आने से पहले मैंने बड़ी साधना की है ।वर्षों तक पृथ्वी के गर्भ में छुपा रहकर मैंने कठिन यातनाये सही। मेरा अंतर्मन बाहर ही खुली हवा में आने को लालायित था ,किंतु किसी ने मेरी नहीं सुनी। सहयोग से एक भूचाल ने मेरी इच्छा की पूर्ति की और मैं भू-गर्भ से बाहर वैज्ञानिकों के हाथों पढ़कर नए-नए रूप पाने लगा ।मेरे रत्न, हीरा ,सोना ,चांदी आदि नामकरण हुए ।मेरे चारों ओर पहरे रहते तथा युवराज की भांति मेरी देखभाल की जाती रही ।शोधन, परीशोधन की प्रतिक्रियाओं को पार करके आए ,मुझ में निष्टूरता पर्याप्त मात्रा में बढ़ गई थी।

मेरा परीसंस्कार एवं यात्रा चक्र

धरती पर आने के बाद जब मैंने सभी को अपनी और ललायित देखा तो मुझे अपने महत्व का एहसास हुआ ।मेरे विविध रूप परिवर्तित किए गए, सोने चांदी धातु में मुझे विविध आकार प्रकार दिए गए ।सन्न 1661 ई. में स्वीडन के “बैंक ऑफ स्टॉकहोम “में मुझे कागज में रूपाइत्त किया। कागज के नोट के रूप में भारत में मेरा उदय सन 1928 में हुआ भारतीय नोट रूप में मेरा जन्म इंडिया सिक्योरिटी प्रेस नासिक, महाराष्ट्र में हुआ तथा बाद में दूसरा प्रेस (देवास मध्य प्रदेश में) कार्यरत है ।में हरे,लाल,नीले, आदि रंगों में तीन सिंहो की सुरक्षा में सुशोभित है।

मेरी महिमा

सागर मंथन से प्राप्त लक्ष्मी जी मेरी देवी है ।उन्होंने मुझे अपना महिमा प्रदान की है ।सृष्टि के कोने-कोने तक मेरी महिमा व्याप्त है ।जन्म, विवाह ,समारोह ,मरण ,आदि सभी में मेरी आवश्यकता होती है ।यदि मैं ना पहुँचूँ तो सभी रूखे तथा व्यर्थ दिखाई देते हैं ।जो भक्त मुझे प्रसन्न कर लेते हैं उनका सभी पर प्रभाव पड़ता रहता है ।मैं किसी को भी हाथ खोलने का अवसर नहीं देता हूं मेरी इच्छा के विरुद्ध यदि कोई हाथ खोल कर चलता है तो मैं वहां से पलायन करके उसे दंडित करता हूं।

आज का युग मेरा ही है।देश,विदेश ,साहित्य,संकृति,कला सभी मे मेरी महिमा है।मेरे अभाव में पता नहीं कितनी किशोरिया अविवाहित रह जाती हैं । अपने प्राण गवाती है।दूसरी और जिन्हें मेरा वरद आशीष मिल जाता है वे सोल्लास जीवन यापन करते हैं.।

ऊंचाहार

बालक , युवा – युवती ,प्रौढ़,व्रद्ध,सभी मुझसे प्यार करते हैं और स्पष्ट कहते हैं –बाप बड़ा ना भैया ,सबसे बड़ा रुपैया ।संसार का कोई भी काम मेरे होने पर रुकता नहीं है ।-“दाम करे सब काम “।आप ध्यान रखें कि मैं किसी एक से स्थाई संबंध रखने का अभ्यस्त रही हूं मैं गतिमान रहता हूं ।मेरी कथा बहुत व्यापक है ।इतने से ही समझ गए होंगे मैं कितना महान हूं।

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